भोंयर पवार: इतिहास, प्रवास और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का विस्तृत अध्ययन
भोंयर पवार: इतिहास, प्रवास और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का विस्तृत अध्ययन
सारांश
भोंयर पवार, जिन्हें क्षत्रिय पवार भी कहा जाता है, मुख्य रूप से बैतूल, छिंदवाड़ा और वर्धा क्षेत्रों में पाए जाने वाले एक विशिष्ट क्षत्रिय समुदाय हैं। यह लेख उनके ऐतिहासिक मूल, प्रवास, सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं, भाषाई विकास और वर्तमान पहचान का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। वंशावली अभिलेखों, ऐतिहासिक स्रोतों और समाजशास्त्रीय अध्ययनों का व्यापक उपयोग करते हुए, इस समीक्षा का उद्देश्य भोंयर पवार समुदाय की मलवा से सतपुड़ा तक की यात्रा को संपूर्णता से प्रस्तुत करना है।
परिचय
भोंयर पवार समुदाय, जिसे पंवार, पवार और भोंयर के रूप में भी जाना जाता है, मध्य भारत में गहरी जड़ें रखने वाली एक ऐतिहासिक क्षत्रिय जाति है। अग्निवंशी राजपूतों के वंशज होने के नाते, वे अपने मूल को मालवा के प्राचीन परमार राजवंश से जोड़ते हैं। सदियों से, भोंयर पवारों ने प्रवास, सांस्कृतिक समावेशन और सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों के माध्यम से अपनी वर्तमान पहचान बनाई है।
ऐतिहासिक उत्पत्ति और प्रवास
अग्निवंशी मूल और राजपूत संघ
भोंयर पवार अग्निवंश क्षत्रिय वंश से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी स्थापना लगभग 2500 ईसा पूर्व माउंट आबू में हुई थी। वे ऐतिहासिक रूप से मालवा के परमार राजवंश से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने आक्रमणों का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वंशावली अभिलेखों के अनुसार, भोंयर पवार 72 क्षत्रिय कुलों के एक संघ के रूप में विकसित हुए, जिनमें परमार, चौहान, सोलंकी, परिहार, राठौड़ और तोमर जैसे प्रमुख कुल शामिल हैं।
मलवा से सतपुड़ा तक प्रवास
औरंगजेब द्वारा पराजित होने के बाद, कई पवार दक्षिण की ओर प्रवास कर नर्मदा नदी को पार करके सतपुड़ा क्षेत्र में आ गए। उन्होंने स्थानीय शासकों, विशेष रूप से गोंड राजाओं के अधीन शरण ली और बैतूल, छिंदवाड़ा और वर्धा में बस गए। समय के साथ, उन्होंने क्षेत्रीय संस्कृति के साथ समावेश किया, जबकि अपनी क्षत्रिय विरासत को बनाए रखा।
भोंयारी भाषा और सांस्कृतिक प्रभाव
भोंयर पवारों की भाषा 'भोंयरी' या 'पवारी' कहलाती है, जो मालवी की एक उपभाषा मानी जाती है। यह भाषा वर्षों में बदलती गई और मराठी तथा हिंदी से प्रभावित हुई। विशेष रूप से वर्धा में, भोंयर पवारों ने मराठी को अपनाया, जबकि मध्य प्रदेश में वे हिंदी के अधिक करीब रहे। इस भाषाई परिवर्तन ने उनके सामाजिक अनुकूलन को दर्शाया है।
गोत्र और कुल संरचना
भोंयर पवार समुदाय 72 गोत्रों के एक सख्त प्रणाली का पालन करता है, जो विवाह के लिए बहिर्विवाही इकाइयों के रूप में कार्य करते हैं। प्रत्येक गोत्र समय के साथ भाषाई विविधताओं और क्षेत्रीय प्रभावों को समाहित करता गया।
72 गोत्रों की सूची
- बारंगिया
- बागवान
- बोगाना
- बरखेडिया
- बारबुहारा
- बड़नगरिया
- भादिया
- बोबाट
- बोबड़ा
- बुहाड़िया
- बरगाड़िया
- चोपड़िया
- चौधरी
- चिकानिया
- ढुंढारिया
- डालू
- देवासिया
- देशमुख
- धारफोड़िया
- ढोटा
- ढोंडी
- ढोबारिया
- ढोलिया
- डिगरसिया
- डोंगरदिया
- दुखी
- फरकाड़िया
- गाड़किया
- गागरिया
- गाडरी
- घागरे
- गिरहारिया
- गोंदिया
- गोहितिया
- गोरिया
- हजारिया
- हिंगवा
- कालभोर
- करदातिया
- कड़वा
- कामड़ी
- कसाई
- खौसी
- खपरिया
- खरगोसिया
- किरंजकर
- किनकर
- कोड़िलिया
- लबाड़
- लावरी
- लाडकिया
- लोखंडिया
- माटिया
- मानमोड़िया
- मुनी
- नाडीतोड़
- उकार
- पठाडिया
- पड़ीयार
- पाठा
- पिंजारा
- रावत
- रबड़िया
- रमधम
- रोलकिया
- सरोदिया
- सवाई
- शेरकिया
- टावरी
- ठुस्सी
- टोपरिया
- उकड़लिया
धार्मिक विश्वास और परंपराएँ
भोंयर पवार हिंदू परंपराओं का पालन करते हैं और माँ गड़कालिका को अपनी कुलदेवी और भगवान महादेव को कुलदेवता मानते हैं। वे वैदिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं और 16 संस्कारों का कड़ाई से निर्वहन करते हैं। उनकी विवाह प्रथाओं में गोत्र-अंतर्गत विवाह की मनाही है।
समकालीन स्थिति और सामाजिक संरचना
भोंयर पवारों का मुख्य व्यवसाय कृषि रहा है, लेकिन आज वे विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जिनमें सरकारी सेवाएँ, व्यापार और शिक्षा शामिल हैं। उन्हें सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के प्रयासों को बल मिला है।
भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ
भोंयर पवार समुदाय को अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को बनाए रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शहरीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव से उनकी पारंपरिक भाषाई और सांस्कृतिक विशेषताएँ धीरे-धीरे बदल रही हैं।
निष्कर्ष
भोंयर पवार समुदाय का इतिहास, विरासत और सांस्कृतिक विकास उनकी सतत् पहचान और अनुकूलनशीलता को दर्शाता है। उनकी यात्रा, मालवा के क्षत्रिय पूर्वजों से लेकर सतपुड़ा में एक संगठित समुदाय के रूप में विकसित होने तक, भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भविष्य में उनके भाषाई विकास और प्रवास पैटर्न पर अधिक शोध की आवश्यकता है ताकि उनके स्थायी विरासत को और गहराई से समझा जा सके।
संदर्भ
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